This blog is the result of 21 years of primary research by Mrs. Saroj Bala on a hugely misrepresented topic 'Ancient Indian History', for which she devised a unique methodology of reading ancient Indian literature and verifying the results with modern sciences.
Top research organizations (like ISRO and ASI), scientists and Sanskrit scholars have contributed towards her work and the findings are expected to add new dimensions to the study of ancient history.
14 अक्टूबर 2021 को "राम कथा सितारों से सुनिए" पुस्तक का विमोचन किया गया। इस पुस्तक में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण में वर्णित क्रमिक ग्रहों की स्थिति के आकाशीय दृश्यों को प्रदर्शित किया गया है। पुरातत्व, समुद्र विज्ञान और सुदूर संवेदन सहित विज्ञान के आठ विषयों के साक्ष्य इस खगोलीय तिथि क्रम का समर्थन करते हैं।
इस पुस्तक में वाल्मीकि रामायण में दी गयी महत्वपूर्ण घटनाओं के समय वर्णित आकाशीय दृश्यों का खगोलीय तिथि निर्धारण किया गया है। खगोलीय संदर्भों की सटीक तिथियाँ प्लैनिटेरीअम गोल्ड तथा स्टेलरीउम सॉफ्टवेयर का उपयोग कर की गई हैं । पुरातत्व व् पुरा-वनस्पति विज्ञान, भूगोल व्समुद्र विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और आनुवंशिक अध्ययन भी इस खगोलीय काल निर्धारण की पुष्टि करते हैं।
श्रीराम की नर से नारायण बनने की यात्रा का सटीक व् विश्वसनीय वर्णन इस पुस्तक में अंतर्निहित है।यह पुस्तक, भारतीय राजस्व सेवा की पूर्व अधिकारी श्रीमती सरोज बाला व भारतीय राजस्व सेवा के अन्य सेवनिवृत अधिकारी, श्री दिनेश चंद्र अग्रवाल का संयुक्त प्रयास है। इस पुस्तक में ‘रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी’ के संक्षिप्त व सरलीकृत तथ्य भी शामिल किए गए हैं ।
यहाँ पर यह बताना आवश्यक होगा कि पिछले 25920 वर्षों में किसी एक समय ही हूबहू वही व्योमचित्र दिखायी देता है जिनसे संबंधित ग्रहों नक्षत्रों का संदर्भ लिया गया हो और वही सटीक तिथि निर्धारण कर सकता है। अन्य वैज्ञानिक साक्ष्यों को जोड़ते समय आवश्यक है कि वही व्योमचित्र हर बार दर्शाया जाए और तत्पश्चात सह संबंध स्थापित किया जाए ।
‘राम कथा सितारों से सुनिए’ – लेखक सरोज बाला व दिनेश चंद्र अग्रवाल - पुस्तक विमोचन वीडियो
शोध के बारे में कुछ और दिलचस्प वीडियो देखने के लिए यूट्यूब चैनल पर जाएं https://www.youtube.com/c/RigvedatoRobotics/videos
सरोज बाला से जाने रामसेतु से संबंधित वैज्ञानिक साक्ष्य और कुछ बेहद दिलचस्प तथ्य, 2021
14 अक्तूबर 2021 को पुस्तक ‘राम कथा सितारों से सुनिए’ के विमोचनके समय श्रीमती सरोज बाला ने बताया कि खगोलीय तथा पुरातात्त्विक प्रमाण रामायण को 7000 वर्ष पुराना सिद्ध करते हैं। रामसेतु वर्तमान में समुद्र के जल स्तर के तीन मीटर नीचे जलमग्न है और एनआईओ, गोवाके द्वारा तैयार समुद्र जलस्तर वक्र के अनुसार, 7000 वर्ष पूर्व समुद्र का जल स्तर वर्तमान से तीन मीटर नीचे था; इस प्रकार 7000 वर्ष पूर्व इस पर चला जा सकता था।
सरोज बाला ने शिपिंग-मार्ग बनाने हेतु सेतु को तोड़ने के विफल हुए प्रयासों के वारे में कई दिलचस्प तथ्य बताए - ड्रेजिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडियाद्वारा हॉलैंड से मंगाया गया ड्रेजर सेतु तोड़ते समय दो हिस्सों में टूटकर जलमग्न हो गया।ड्रेजर को निकालने गया डीसीआई का क्रेन भी टूटकर समुद्र में डूब गया।निरिक्षण के लिए आये रूसी अभियन्ता (इंजीनियर) की टांग टूट गयी! आस्था वाले लोग इसे दैवीय प्रकोप मानते हैं जबकि वैज्ञानिक इस का वैज्ञानिक आधार बताते हैं। जो भी हो, रामसेतु के अंतिम अवशेषों को नष्ट करने के भारतीय सरकार के सभी प्रयास विफल रहे तथा कई हज़ार करोड़ का नुकसान भी हुआ।
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चतुर्युगों की सटीक व्याख्या सुनिए श्रीमती सरोज बाला से / अक्तूबर 2021 / Rigveda to Robotics
14 अक्तूबर 2021 को पुस्तक ‘राम कथा सितारों से सुनिए’ के विमोचनके समय श्रीमती सरोज बाला ने कहा कि चतुर्युग (सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग) में मूल रूप से केवल 12,000 मानव वर्ष ही होते थे।कुछ अल्पाधिक वर्षों सहित चतुर्युग के अवरोही तथा आरोही क्रम भी थे। परन्तु सुदूर प्राचीन काल में किसी समय एक मानव वर्ष को देवताओं के एक दिव्य दिवस के बराबर मानकर चतुर्युग को 12,000 दिव्य वर्षों का मान लिया गया। यही नहीं फिर उत्तरायण (सूर्य की 180 दिनों की उत्तर दिशा में चाल) को देवताओं का एक दिन और दक्षिणायण (सूर्य की 180 दिनों की दक्षिण दिशा में चाल) को देवताओं की एक रात मानकर यह व्याख्या कर दी गई कि ये 360 दिन देवताओं का एक दिन और एक रात होते हैं।
संभवत: यह व्याख्या ध्रुव देवता के एक दिन और एक रात के लिए की गई थी। फलस्वरूप 360 मानव वर्षों को देवताओं के एक वर्ष के बराबर मान लिया गया। तत्पश्चात् चतुर्युग को 12000 दिव्य वर्षों का मानकर, इन 12000 दिव्य वर्षों को 360 से गुणा करके चतुर्युग की समयावधि 43,20,000 मानव वर्ष निर्धारित कर दी गई।भला मनुष्यों के लिये ‘दिव्य वर्ष’ लागू करने का क्या औचित्य हो सकता था और फिर सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणयाण चाल के 360 दिनों के साथ चतुर्युग के 12000 वर्षों को गुणा करने का भी क्या औचित्य हो सकता था?
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पुस्तक "महाभारत की कहानी, विज्ञान की ज़ुबानी" के विमोचन के अवसर पर पुस्तक "राम कथा सितारों से सुनिए" कुछ वी.आई.पी. को सम्मान स्वरूप भेंट की गयी